आचार्य चाणक्य

”आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रु संकटे।
राजद्वारे श्मशाने च, यस्तिष्ठिति स बान्धवः”
अर्थ- बीमारी में, विपत्ति काल में, अकाल के समय, दुश्मनों से दुख पाने या आक्रमण होने पर, राजदरबार में और श्मशान भूमि में जो साथ रहता है, वही सच्चा भाई अथवा बन्धु है।”
”माता शत्रुः पिता बैरी येन बालो न पाठितः।
न शोभते सभा मध्ये, हंस मध्ये बको यथा”
जो माता पिता अपने बच्चों को नहीं पढाते, वे उनके शत्रु हैं ऐसे अनपढ़ बालक सभा के मध्य में उसी प्रकार शोभा नही पाते जैसे हंसो के मध्य में बगुला शोभा नहीं पाता। ”सांस्कारिक एवं कुलीन व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में अपनी वफादारी पर कभी आंच नहीं आने देते।” एक सामान्य व्यक्ति को बार-बार यह सोचना चाहिए कि स्थान क्या है, काल अथवा समय कैसा है,-अच्छा है या बुरा और यदि बुरा है तो उसे अच्छा कैसे बनाया जाय। हमारे मित्र कितने हैं, हमारी आय कितनी है और व्यय कितना है, मै कौन हूँ मेरी शक्ति कितनी है और मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है और लगातार सुधार करते हुए प्रगति पथ पर निरंतर आगे बढ़ता रहना चाहिए। ”आदमी का आत्मबल सभी शक्तियों से ऊपर होता है। आत्म बल हो तो मनुष्य कठिन से कठिन संकट व परिस्थितियों का भी हंसते-हंसते सामना कर लेता है और सफलता प्राप्त करता है।”
धन और शक्ति के अहंकार से भरा व्यक्ति अपना विवके खो देता है। उसे अपना स्वार्थ ही सर्वोपरि दिखाई देता है और अपने स्वार्थ के पूर्ति हेतु अपने निकटस्थ बन्धु-बांधवों और मित्र का उपयोग करता है और ज्यादातर संबन्ध न्यूनतम कर लेता है और यदि उस व्यक्ति से मदद की अपेक्षा की जाय तो संबन्ध विच्छेद भी कर सकता है। ऐसे व्यक्ति की पहचान कर उनसे दूर रहना ही भलाई है अन्यथा बाद में पछताना पड़ता है कि मैंने एक निम्न स्तर के व्यक्ति का निम्न कोटि के काम अथवा स्वार्थपूर्ति हेतु अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया।
और अन्त में,
क्या राजा, क्या रंक
क्या हाथिन के सवार
जाना सबको एक दिन अपनी-अपनी वार

गरीबी’ एक बहुत ही नकारात्मक शब्द है

’गरीबी’ एक बहुत ही नकारात्मक शब्द है और कोई भी मनुष्य गरीब नहीं रहना चाहता है। हमारे हिन्दू धर्म ग्रन्थों में धन का बहुत ज्यादा महत्व नहीं दिया गया है। अमीर के घर में पैदा होना और निर्धन के घर में पैदा होना मनुष्य के वश में नहीं होता है और यदि ऐसा होता तो प्रत्येक व्यक्ति निर्धन अथवा साधन-विहीन घर में क्यों जन्म लेता। सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार मनुष्य को बार-बार विभिन्न योनियों में जन्म लेना है। ऐसी भी मान्यता है कि पूर्व जन्म के अच्छे या बुरे कर्म के अनुसार मनुष्य को नया जन्म मिलता है और इस मान्यता के आधार पर यदि उसका कर्म अच्छा है तो उसे साधन-संपन्न परिवार में जन्म मिलता है और वहां पर वह विभिन्न प्रकार की सुख सुनिधाओं का आनन्द उठाता है इसके विपरीत यदि पूर्वजन्म मे उसके कर्म बहुत ही खराब है तो वह निर्धन अथवा अत्यंत निर्धन परिवार में जन्म लेता है और पैदा होते ही अभाव ग्रस्त जीवन जीता है और अनेक प्रकार के कष्ट प्राप्त करता है। इस प्रकार परिवार के आवंटन पश्चात फिर कर्म शुरू होता है और यदि वह अच्छा अथवा उत्कृष्ट कार्य करता है तो प्रगतिशील रहते हुए अपने क्षेत्र में उन्नति प्राप्त करता है इस प्रकार समाज में हम देख सकते है कि निर्धन परिवार में जन्म लेकर लोग अपने श्रेष्ठ कर्मों के कारण समाज एवं राष्ट्र में उच्च स्थान को प्राप्त करते है। इसके विपरीत संपन्न परिवार में जन्म लेकर लोग बुरे कर्मो की वजह से धन दौलत, सम्मान सब नष्ट कर देते हैं तथा समाज में अपमानित जीवन जीने के लिए बाध्य हो जाते हैं।
हिन्दू धर्म ग्रंथो में हमेशा कर्म की महत्ता का वर्णन किया गया है जैसे गोस्वामी तुलसी दास जी ने श्री राम चरित मानस में वर्णन किया है कि-
”सकल पदारथ है जग माहीं
कर्म हीन नर पावत नाहीं”
इसी प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने गीता में उपदेश दिया है कि, ”कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सड्.गोऽस्त्वकर्मणि।।”? एक बात यहां अवश्य लिखना चाहता हूं कि अच्छे कर्म का फल हमेशा अच्छा एवं बुरे कर्म का फल हमेशा बुरा होता है। हमारे धर्मग्रन्थों में बल बुद्धि एवं विद्या को सर्वोत्तम धन माना गया है। यह ऐसा धन है जो हमारे पास हमेशा रहता है। इसको कोई छीन नहीं सकता। कोई बांट नहीं सकता एवं चोर चोरी नहीं कर सकता और इसी के कारण मनुष्य अपनी बड़ी से बड़ी विपत्तियों पर विजय प्राप्त करता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा मे लिखा है कि-
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु क्लेश, विकार’
संघर्ष को ताकत कैसे बनाया जाय इस बात पर हमेशा चिन्तन मनन एवं विचार करते रहना चाहिए तथा साधनो की कमी के द्वारा उत्पन्न नकारात्मक सोच को प्रभावी नहीं होने देना चाहिए। धन गतिशील होता है यह जाति, धर्म, लिंग, भेद शिक्षित, अशिक्षित आदि किसी प्रकार मे कोई भेद नहीं करता है तथा उस व्यक्ति के पास संकलित होना शुरू हो जाता है जो व्यक्ति कर्मठ अथवा कर्मवीर होता है इसलिए मनुष्य को धन की कमी को कभी कमी नहीं मानना चाहिए। ऐसा हो सकता है कि उसे धन के अभाव में विभिन्न प्रकार की कठिनाइयां अथवा अपमान सहना पड़ सकता है लेकिन यह सब अस्थायी होगा और उसकी कर्मठता, ईमानदारी दूर दृष्टि अनुशासन आदि गुण इस निर्धनता पर एक दिन अवश्य विजय प्राप्त करेंगे। हमारे पास कोई निश्चित डाटा नहीं है लेकिन इस बात को पूर्ण विश्वास के साथ कह सकतें हैं कि निर्धनता ने इस विश्व को जितने महापुरूष दिये हैं शायद अमीरी ने नहीं दिये हेैं। निर्धनता को कभी अभिशाप नहीं मानना चाहिए और इससे संघर्ष करते हुए निरंतर प्रगति के पथ पर बढ़ते रहना चाहिए।