मनुष्यता

राजा बालीक ने अपने प्रमुख सचिव विश्वदर्शन को पद से हटा दिया। कोइ्र्र छोटी-सी बात बुरी लग गई थी तो यह कदम उठाया। विश्वदर्शन अपने गाँव जाकर पुनः खेती करके प्रसन्नतापूर्वक जीवन बिताने लगे। एक दिन बालीक की इच्छा हुई कि देखें उसकी क्या स्थिति है। छद्यवेश में ही राजा ने पूछ लिया- ”आपको तो राजा ने पद से हटा दिया। तब भी आप इतने प्रसन्न क्यों ? और इतने सारे आपके समर्थक कैसे ?” विश्वजीत बोले-”मनुष्यता के सिद्धांतो का पालन किया मैंने। पहले तो मुझसे राजा से जुड़ा होने के कारण लोग थोड़ा भय भी रखते थे। अब वह नहीं है। खुलकर बात करते हैं। परिश्रम की रोटी खाता हूँ। सेवा-सहानुभूति से भरे जीवन में जो आनंद है वह और कहाँ मिलेगा। ” राजा को लगा, एक योग्य व्यक्ति खो दिया। सम्मान पद से नहीं, मानव गरिमा के अनुरूप जीवन जीने के कारण मिलता है।