भाई का कर्तव्य

एक गाँव में दो भाई रहते थे। पिता जी की मृत्यु बचपन में ही हो गयी थी। बड़ा भाई मेहनत-मजदूरी खेती आदि करके परिवारिक खर्च की व्यवस्था करता रहा। छोटा भाई पढने में बहुत अच्छा था और बड़े भाई ने बहुत मेहनत से उसे पढाया। आगे चलकर छोटे भाई की शहर में एक अच्छी नौकरी लग गयी और वह एक अधिकारी बन गया। उसकी शादी भी बड़े परिवार की सुन्दर शिक्षित लड़की से हो गयी जबकि गाँव में बडे़ भाई की शादी गाँव से ही हुयी और उसकी पत्नी भी साधारण पढ़ी-लिखी थी। छोटे भाई के दो बेटे और बड़े भाई के एक बेटी एवं एक बेटा था जिसमें बेटी बड़ी थी । शुरू में छोटे भाई ने बड़े भाई की आर्थिक रूप से बहुत मद्द की और उसका जीवन स्तर भी सुधरा लेकिन बाद में छोटे भाई की तरफ से आर्थिक मद्द लगभग बन्द हो गयी। बड़े भाई को बुरा तो लगा लेकिन सोचा छोटा अपनी घर-गृहस्थी को व्यवस्थित कर रहा होगा इसलिए नही मद्द कर पा रहा है। एक दिन अचानक बड़े भाई का एक सन्देश मिलता है हर में छोटे भाई का गृह-प्रवेश है और उसमें भइया-भाभी को आना है। बड़ा भाई पत्नी समेत शहर पहुंचता है तो यह देखकर वह भौचक्का रह जाता है कि छोटे भाई ने दो मकान एक ही तरह से बनवा रखा है ”मतलब दोनों बच्चों के लिए अभी से अलग-अलग मकान ” ’हम बेटी की शादी का दहेज जोड़ रहे हैं’ यहां यह दो-दो मकान बनवा रहें हैं ” ”गाँव वाले मकान एवं जमीन में हिस्सा अलग से” हम कहीं के न रहें” आदि विरोधी बातें बड़े भाई के मानस-पटल पर घूम रही थी लेकिन वह कुछ कर तो नहीं सकता था। उसकी पत्नी भी बिना मन के देवरानी के आदेशानुसार सारा काम किये जा रही थी लेकिन बहुत उत्साह से नहीं। समय बीता दो पण्डित आये। दो जगह पूजा की व्यवस्था एवं समय के अनुरूप् चल रहा था बड़े भाई को जो बात सबसे ज्यादा खल रही थी वह यह थी कि छोटे भाई ने दो मकान बनवा लिए न बात की, न बताया, न पूँछा मतलब एकदम बदल गया ”इतनी बड़ी बात फिर भी कोई पूंछतांछ नही” छोटा भाई और उसकी पत्नी, समझते तो सब थे लेकिन वह भी कोई बात न करके मजे ले रहे थें और कार्य-व्यवस्था में जुटे थे साथ ही उनके आफिस का स्टाफ भी ’जी सर’ ’यस सर’ ’ओके सर’ आदि कह के मद्द कर रहा था। खैर पण्डित जी आये, शुभ मुहूर्त की वेला आयी, पण्डित जी ने आदेश दिया कि भवन स्वामी गृह-प्रवेश पूजा के लिए तैयार हों। घटना-क्रम परिवर्तन लेता है। छोटा भाई पत्नी समेत बड़े भाई के पास मुस्कुराता हुआ आता है, उनको और भाभी को पहले से तैयार पूजा के वस़्त्र समर्पित करता है और तब दो मकान का राज खोलता है ”कि भैया इसमें एक मकान आपका है और एक मकान हमारा है दोनों एक ही तरह से हैं फिर भी जो मकान आपको पसन्द है उसकी पूजा आप और भाभी को करनी है जो दूसरा होगा वह हम पति-पत्नी का होगा। इस मकान की वजह से हम आपकी आर्थिक मद्द नहीं कर पा रहे थें। अब आप गाँव में नहीं रहेंगे आप यहां आयेंगे, आप के बच्चे अब यहीं रहेंगे और पढाई करेंगे। हम लोग एक ही मकान में साथ-साथ रहेंगे, दूसरा मकान बना तो है पर वह किराये पर दिया जायेगा और उससे होने वाली आमदनी आपकी होगी जिससे आपका और भाभी जी का व्यक्तिगत खर्चा चलता रहे। आपका हमसे पैसा मांगने में संकोच न रहे इसलिए ऐसी व्यवस्था सोची गयी है। पारिवारिक मासिक खर्च, बच्चों की फीस आदि की चिन्ता आपको नहीं करनी है वह सब हम पति-पत्नी मिलकर उठायेंगे। आप भाभी घर पर रहेंगे, बच्चो का ख्याल रखेंगे और उन्हें अपनी तरह संस्कारित करेंगे, सारे बच्चे एक साथ रहेंगे तो उनमें अच्छा संस्कार होने के साथ-साथ आपस में प्रेम-भाव भी विकसित होगा और वह लोग एक दूसरे के सुख-दुख में साथी एवं सहयोगी बनेंगे। इस बदलते माहौल से हमे बच्चों को बचाना है उन्हें अपने ही तरह संस्कारित करना है” इस तरह छोटे भाई ने बड़े भाई को सारी कार्य-योजना और उनके लिए निश्चित की गयी जिम्मेदारियों को एक साथ बता दिया फिर छोटे भाई की पत्नी बोली ”दीदी”! वह गुड़िया की शादी की चिन्ता मत करना उसके लिए हम लोगों ने पहले से व्यवस्था कर रखी है। हम प्रत्येक महीने एक निश्चित रकम उसकी शादी के लिए इकट्ठा कर रहे हैं। और आज उसमें इतना पैसा इकट्ठा हो गया है कि हम शादी कर सकते हैं लेकिन अभी उसको आगे की पढ़ाई करनी है। अपने पैरों पर खड़ा होना है” बड़ा भाई अश्रुपूरित आँख लिए सोच रहा था ”कि हमे अब सोंचने और चिन्ता करने के लिए बचा ही क्या है? सब चिन्ता एवं व्यवस्था तो तुम लोग पहले ही किये हो” इसी तरह अश्रुपूरित नैन लिए बड़े भाई एवं उसकी पत्नी ने गृह-प्रवेश पूजा सम्पन्न की। शाम गृह-प्रवेश भोज के समय जो सम्मान आये हुए लोगों द्वारा बड़े भाई को दिया गया उसकी उम्मीद बड़े भाई को स्वप्न में भी नहीं थी। छोटे भाई ने अपने साथियों के बीच बड़े भाई की छवि एक देव-पुरूष के रूप में प्रस्तुत की थी क्योंकि भगवान के रूप में उसे बड़ा भाई मिला था और उसी बड़े भाई की तपस्या, मेहनत एवं सहयोग से वह अधिकारी था अन्यथा वह भी गाँव में अन्य युवकों की तरह मजदूरी एवं खेती कर रहा होता।