पुण्य की संपदा

आद्य शंकराचार्य भिक्षाटन पर थे। एक घर में पुकार लगाई। एक बुढ़िया आई और कहा कि मेरे पास देने को कुछ भी नहीं। बस एक आँवला भर है, यही आपको दे रही हूँ। यह उसका शत प्रतिशत दान था, पर पूरे भाव के साथ था। भरी आँखों से उस आँवले को स्वीकार कर उन्होंने महालक्ष्मी से उस माँ की दरिद्रता मिटाने की प्रार्थना की। यह स्तुति ’कनकधारा स्तोत्र’ कहलाती है। ऐसा कहा जाता है कि महालक्ष्मी ने सोने के आँवले बरसाए। उस माँ के सारे अभाव दूर हो गए। आज भी वही भाव हों, श्रेष्ठ कार्यों के लिए सौ प्रतिशत देने का भाव हो, वह स्तोत्र आद्य शंकर की मनःस्थिति में गाया जाए तो वही प्रभाव प्रस्तुत कर सकता है। शर्त एक ही है, अपना सब कुछ दे देने का भाव। धन नहीं पुण्य की संपदा बड़ी है। वही हमारे साथ जाएगी।