ऐसी पौराणिक कथा है कि महाभारत जैसे विराट ग्रंथ का लेखन कार्य महर्षि व्यास ने गणेश जी को सौंपा। गणेश जी ने इस भगीरथ कार्य को स्वीकार किया, पर वे लेखन में बहुत तेज थे। शेखी में ही उन्होंने शर्त रखी कि महर्षि व्यास सत्त बोलते रहेंगे, रूकेंगे नही - वरना वे लेखन कार्य बीच में ही छोड़ देंगे। महर्षि व्यास तो ऋषि शिरोमणि थे! उन्होंने गणेश जी का प्रस्ताव मान्य किया, पर सामने शर्त रखी कि - गणेश जी समझे बगैर एक भी श्लोक लिखेंगे नही! अर्थात बीच-बीच में नयी रचना सोचने का समय महर्षि को सहज ही मिल गया! वाह! एक बुद्धि की देवता, तो एक बुद्धि के विजेता।