दंड देने का अधिकारी

ईसामसीह मार्ग पर जा रहे थे उन्होंने देखा कि कुछ लोग एक महिला को पत्थर से मार रहे हैं। उन्होंने इसका कारण पूछा तो लोग बोले-”यह युवती चरित्रहीन है और इसलिए दंड की अधिकारी है।” ईसामसीह गंभीर होकर बोले-”यह ठीक है कि व्यभिचार पाप है, परंतु दंड देने का अधिकारी वही व्यक्ति हो सकता है, जिसने स्वयं अपने जीवन में कोई पाप न किया हो।” ईसामसीह ने उस युवती से कहा-”बेटी! चरित्र जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण गुण है। यदि कोई भूल हो गई हो तो उसे सुधारो और अपना शेष जीवन सदाचार में लगाओ।” वह युवती ईसामसीह के सम्मुख नतमस्तक हो गई।