गोस्वामी तुलसीदास जी बनारस में शेष सनातन जी के पास रहकर पढ़ रहे थे। बाल्यकाल ही था। वेद-वेदांग, व्याकरण आदि सीख रहे थे। मणिकर्णिका घाट पर एक तांत्रिक था बटेश्वर। उसने तुलसीदास से कहा- ”तू हनुमान जी की उपासना करता है। हिम्मत है तो जा-रात के बारह बजे पीपल के पास खड़ा होकर दिखा। भूत पिशाच तूझे खा जाएंगे । तेरे हनुमान कुछ नहीं कर पाएंगे।” तुलसीदास जी को शेष सनातन की पत्नी बहुत व्यार करती थीं। उन्होंने कहा-” तुम हनुमान जी को याद करके जाओ।” गोस्वामी जी ने दिन भर में हनुमान चालीसा लिख दी और रात को बारह बजे जाकर पीपल के नीचे शंख बजाकर आ गए। फिर तो इतना विश्वास जमा हनुमान जी पर कि श्रीराम कथा को ही अपनी आजीविका का आधार बना लिया। सुरीला कंठ था। बड़े लोकप्रिय हुए। संस्कृत में वाल्मीकि रामायण कहते फिर हिंदी के पद में अनुवाद करके सुना देते । तुलसी ने पहली अवधी कथा अयोध्या में कही थी। ऐसा कहते हैं कि जिस दिन यह पूरी हुई, उसी दिन पहली बार श्रीराम लला के मंदिर का ताला अकबर ने खुलवाया था।