बहराम बड़ा ही धनवान था। उसका कारवाँ डाकुओं के बीच फंस गया। लाखों रूपये लूट लिए गए। बड़ा भारी नुकसान हुआ। संत अहमद उसके समीप ही रहते थे। एक दिन उससे मिलने गए। बहराम ने भोजन लाने का आदेश दिया। संत बोले- ”भाई! तुम्हारा इतना नुकसान हुआ है। मैं भोजन करने नहीं तुम्हें सांत्वना देने आया था। इसे रहने दो।” बहराम बोला- ”आप निश्ंिचत होकर भोजन लें। यह सच है कि मेरा बड़ा नुकसान हुआ है। डाकुओं ने मुझे लूटा है, पर मैंने कभी किसी को नहीं लूटा। मैं अल्लाह का एसानमंद हूँ कि मात्र मेरी नश्वर संपत्ति लूटी गई है। मेरी शाश्वत संपत्ति है-ईश्वर के प्रति मेरा दृढ़ विश्वास। वही मेरे जीवन की सच्ची संपत्ति है। वह मेरे पास है।” बहराम से संत अहमद बोले- ”भाई! सही अर्थों में तुम संत हो।”