देशभक्त

अफगान का आक्रमणकारी अहमदशाह अब्दाली भारत विजय हेतु आगे बढ़ता हुआ पानीपत के मैदान तक आ पहुंचा । यही उसकी मराठे सैनिकों से टक्कर थी। एक दिन अब्दाली अपने शिविर के बाहर विचार-विमर्श कर रहा था कि उसकी दृष्टि मराठा शिविर पर पड़ी, जहां कई स्थानों पर अग्नि जल रही थी। उसने अपने गुप्तचर सैनिक से पूछा- ”ये अलग-अलग आग क्यों जल रही है ? अभी तो गरमी के दिन हैं।” गुप्तचर ने कहा- ”ये लोग किसी का छुआ खाना नहीं खाते । सभी अलग-अलग खाना बनाते हैं।” अब्दाली ने जोर से ताली बजाई, सारे सिपहसालार आ गए। उसने कहा- ”चलो ! अभी आक्रमण करो।” तत्काल तीन ओर से घेरकर आक्रमण किया गया। लड़ाई में प्रधान सेनापति सदाशिव राव तो मारा गया, पर कई अफगानी सैनिकों को मार लेने वाले इब्राहिम गार्दी नामक एक मुख्य सेनापति को बंदी बना लिया गया। उसे अब्दाली के समक्ष प्रस्तुत किया गया, पूछा- ”तुम मुसलमान होकर मराठों का साथ क्यों दे रहे थे ? मैं तम्हें बीस हजार सैनिकों का नायक बनाता हूँ। तुम मुक्त हो। मेरे साथ काम करो।” इब्राहिम बोला- ”हिंदुस्तान मेरा वतन है, मेरी जन्मभूमि है। इसी की मिट्टी में मैं बड़ा हुआ हूँ। मुझे इस देश से प्यार है। इस पर निगाह डालने वाले की मै आँखे नोच डालूंगा।” अहमदशाह अब्दाली ने उसकी यह बात सुनकर, उसे तुरंत मार डाला। एक देशभक्त मुसलिम ने भारतमाता के चरणों मे स्वयं को अर्पित कर दिया।