छत्रपति शिवाजी के गुरू समर्थ गुरू रामदास को एक किसान ने गन्ने के एक छोटे टुकड़े को पाने के लिए अपशब्द बोल दिए। मामला शिवाजी के सामने लाया गया। किसान ने सोचा कि अब उसे मृत्युदंड ही मिलेगा; क्योंकि घटनाक्रम राजा के गुरू से जुड़ा है। दरबार में समर्थ गुरू रामदास, शिवाजी से बोले-”शिवा! इसका दंड मैं निर्धारित करना चाहूँगा।” छत्रपति शिवाजी ने गुरू-आज्ञा सहर्ष स्वीकार की। समर्थ गुरू रामदास बोले- ”शिवा! इस किसान को पाँच बीघा जमीन दान में दे दो।” शिवाजी समेत दरबार में मौजूद सभी लोग आश्चर्य में पड़ गए कि यह कैसा दंड समर्थ गुरू रामदास जी ने दिया। सबके कुतूहल को भाँपते हुए समर्थ गुरू रामदास बोले-”यह किसान निर्धन है। इसने क्षुधा-पीड़ित होकर मुझसे दुव्र्यवहार किया। इसकी पीड़ा-निवारण हमारा कत्र्तव्य है।” गुरू रामदास के इस व्यवहार ने उस किसान को सदा के लिए बदल दिया।