1- अपने अमूल्य समय का एक-एक क्षण परिश्रम में व्यतीत करना चाहिए, इसी में आनन्द है।

2- प्रसन्नता बंसत की तरह है जिसके आगमन पर हृदय की कलियाँ खिले फूल की तरह हँस पड़ती है।

3- सोने का प्रत्येक धागा मूल्यवान होता है, उसी प्रकार समय का प्रत्येक क्षण भी मूल्यवान होता है।

4- विचार सुनना पुष्पों को चुनने जैसा और उन पर चिन्तन करना उन्हें माला में गँूथने के समान है।

5- प्रतिभा अपनी राह स्वयं निर्धारित कर लेती है और अपना दीप स्वयं ले चलती है।

6- अधिकार की अपनी एक मर्यादा होती है, संसार में सबसे बड़े अधिकार सेवा और त्याग से मिलते हैं।

7- लक्ष्य पूरा करने के लिये अपनी शक्तियों द्वारा परिश्रम करना ही पुरूषार्थ है।

8- मनुष्य के भीतर जो कुछ सर्वश्रेष्ठ है, उसका विकास प्रंशसा एवं प्रोत्साहन के द्वारा ही किया जा सकता है।

9- बुद्धिमान विवेकक से, साधारण मनुष्य अनुभाव से, अज्ञानी आवश्यकता से और पशु स्वभाव से सीखते हैं।

10- महान बनने की अकांक्षा करने से हमारी आत्मा की सर्वोत्कृष्ट शक्तियों का विकास होता है।

11- जीवन का महान लक्ष्य ज्ञान नही, बल्कि कर्म है। उदारपूर्ण कार्य स्वयं अपना पुरस्कार है।

12- अज्ञान ईश्वर का अभिशाप है, ज्ञान वह पंख है, जो हमें उड़ाकर स्वर्ग तक ले जाता है।

13- होठों पर मुस्कान हर मुश्किल कार्य को आसान कर देती है। मुस्कान चेहरे का सच्चा सौन्दर्य है।

14- प्रेम ही एक ऐसी वस्तु है जिसके द्वारा नित्यता की एक झलक पाने की आशा हमको मिली हुई है।

15- बड़ी उपलब्धियाँ वही व्यक्ति पा सकता है जो छोटी सी शुरूआत से भी संतुष्ट हो।

16- स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है, जो संतोष सबसे बड़ा धन है, वफादारी सबसे बड़ा सम्बन्ध है।

17- प्यार कभी निष्फन नहीं होता, चरित्र कभी नहीं हारता और धैर्य व दृढ़ता से अपने अवश्य सच हो जाते हैं।

18- अध्ययन हमें आनन्द तो प्रदान करता ही है, अंलकृत भी करता है और योग्य भी बनाता है।

19- जीवन में ज्यादा रिश्ते होना जरूरी नहीं है, पर जो रिश्ते हैं उनमें जीवन होना जरूरी है।

20- सत्य किसी व्यक्ति विशेष की सम्पत्ति नहीं है बल्कि ये सभी व्यक्तियों का खजाना है।

21- छोटी - छोटी खुशियों को पूरे मन से और जोश से मनाएं। इससे जीवन में उत्साह बना रहता है।

22- यदि आप गुस्से के एक क्षण में धैर्य रखते हैं तो आप दुख के सौ दिन से बच सकतें है।

23- जब तक आप दौड़ने का साहस नहीं जुटाओगे, तुम्हारे लिए प्रतिस्पर्धा में जीतना सदा असंभव बना रहेगा।

24- जीवन में प्रगति के साथ हम अपनी योग्यताओं की सीमाओं से अवगत होतें जाते है।

25- शान्ति को बाहर खोजना व्यर्थ है, क्योंकि वह तो आपके गले में पहना हुआ हार है।

26- हृदय से बढ़कर तुम्हारे लिए अच्छा उपदेशक और कोई नहीं हो सकता।

27- जिसे समय का सदुपयोग करने की कला आ गई, उसने सफलता के रहस्य को समझ लिया।


यशपूर्ण जीवन का एक घंटा कीर्ति रहित युगों से कहीं अधिक है। -वाल्टर स्काॅट


कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। यह केवल नीति और सदावृत्ति का ही नाश नहीं करता, बल्कि बुद्धि का भी क्षय करता है। किसी युवा पुरूष की संगति यदि बुरी होगी, तो यह उसके पैर में बंधी चक्की के समान होगी, जा उसे अवनति के गड्ढे में गिराती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाहु के समान होगी, जो उसे निरंतर उन्नति की ओर उठाती जाएगी। -आचार्य रामचन्द्र शुक्ल


कोई भी व्यक्ति स्वप्न देख-देखकर चरित्रवान नहीं बन सकता। चरित्र का निर्माण तो अपने आप को गढ़-गढ़कर, ढाल-ढालकर करना होता है। कर्तव्य के प्रति निष्ठा, संयम और सदाचार के प्रति श्रद्धा, सत्य के प्रति अनुराग, ज्ञान के प्रति एक जिज्ञासा और मानवता के उत्कर्ष के प्रति एक दृढ़ आस्था ही महान् चरित्र के निर्माण के मुख्य आधार है।- भगवती प्रसाद वाजपेयी


पारिवारिक सहयोग व्यवस्था की सीख चीटियों से लनी चाहिए, हाथियों से परिवार की सुरक्षा का गुण सीखना चाहिए, पति-पत्नी के प्रेम की शिक्षा जल और मछली से लेनी चाहिए, धन के संचय की प्रवृत्ति चहों से उधार लेनी चाहिए और लोक-व्यवहार कुत्तों से सीखनी चाहिए। - अत्रि


भले ही सामथ्र्य न हो, पर शत्रु के सामने कभी भी अपनी दुर्बलता प्रकट नहीं करना चाहिए। विष रहित सर्प की फुफ्कार भी उसके शत्रुओं को भयभीत कर देती है। -चाणक्य


जो सर्प, अग्नि, सिंह, व्याघ्र, विद्वान, स्त्री और अपने कुल के सदस्यों का अपमान नहीं करता, विपत्तियां उससे दूर ही रहती है। -वेदव्यास


अपनी पत्नी का अपमान करनेवाला, उसे प्रताड़ित करनेवाला, उसके दुःखों में सहानुभूति न दिखाने वाला, उसके बिना यज्ञ करने वाला और उसे दीन-हीन बनाकर रखने वाला अधम होता है और सर्वत्र असफल रहता है। उसे सुख कभी प्राप्त नहीं होता। -वसिष्ठ


किसी का अहित न करो, किसी की हिंसा (शोषण) न करो, झूठ का आश्रय कभी मत लो, वाणी में कटुता न लाओ, चोरी न करो, फिर तुमसे बड़ा धर्मात्मा कौन है ?-शिवपुराण


संसार मे वे ही महान् है जो दूसरे के दुःखों की पीड़ा की अनुभूति करके उनके दुःखों को दूर करने का प्रयत्न करते है। -विष्णुपुराण


भलाई करने वाला स्वभाव-वश ही भलाई करते है। उन्हें यश और उपलब्धियों की ही नहीं स्वर्ग का भी कामना नहीं होती। -प्रेमचंद


स्ंसार आप को वही समझता है, जो आप खुद समझते हैं। -स्वेट मार्डेन


धिक्कार है वह जिंदगी, जो मक्खियों की तरह पापों की विष्ठा के ऊपर भिनभिनाने में और कुत्ते की तरह विषय वासना की जूठन चाटनें में व्यतीत होती है। उस बड़प्पन पर धिक्कार है, जो खुद कपूर की तरह बढ़ते है पर उनकी छाया में एक प्राणी भी आश्रय नहीं पा सकता। जिनका जीवन तुच्छ स्वार्थों की पूर्ति की उधेड़बुन में निकल गया, हाय वे कितने अभागे हैं, देहरूपी बहुमूल्य रतन इन दुर्बुद्धियों ने कांच और कंकड़ के टुकड़ों के बदले बेच दिया। इन दुर्बुद्धियों को अंत में पश्चाताप ही प्राप्त होगा।
मनुष्यों ! जिओ और जीने योग्य जीवन जीओ ! ऐसी जिंदगी बनाओ, जिसे आदर्श और अनुकरणीय कहा जा सके। विश्व में अपने पदचिह्नन छोड़ जाओ, जिन्हें देखकर अगामी संतति अपना मार्ग ढूंढ सके। -रामकृष्ण परमहंस


किसी को इतना निर्धन नहीं होना चाहिए िकवह दूसरों को मुस्कान रूपी उपहार भी न दे सके।-अफलातून


मन एक उपजाऊ खेत की भांति है। यहां आप जैसा बोएंगे, वैसा काटेंगे। अगर सुंदर विचार उगाएंगे, तो आपका मस्तिष्क समृद्ध बनेगा। दुर्विचार इसी मस्तिष्क को झाड़-झंखाड़ से भरा जंगल बना देंगे। बबूल के बीज बोने से गुलाब पैदा नहीं होते। -स्वेट मार्डेन


ईष्र्या रखने वाले मनुष्य को इतना दुःख अपनी असफलता पर नहीं होता, जितना दूसरे की सफलता देखकर होता है।-नानक सिंह


नेकी करने की आदत डालिए। हर रोज किसी न किसी की कुछ न कुछ मदद जरूर करें। और कुछ न कर सकें, तो हपदर्दी के दो मीठे बोल तो बोल ही सकते हैं। चाहे कोई राह का भिखारी हो या घर का नौकर या फिर कोई भी दुःखी इनसान सहानुभूति के कुछ शब्द दान करने से आपका कुछ नहीं जाएगा। -बिली ग्रेहम


जिस मनुष्य को अन्याय पर क्रोध आता है, जो अपमान को सह नहीं सकता, वही पुरूष कहलाता है, जिस मनुष्य में क्रोध या चिढ़ नही है, वह नपुंसक ही है। -लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक


मल, मूत्र,शुक्र (वीर्य), अधोवायु, वमन, छींक, डकार, हिचकी, जंभाई, भूख, प्यास, आंसू, निद्रा एवं श्वांस, इन्हें रोकने वाला भयानक रोगों का कष्ट भोगता है।-चरक


भिखारी को कभी सुख नहीं मिलता। उसे दयापूर्वक एक टुकड़ा मिल जाता है, किंतु उसके पीछे उपेछा और घृणा का भाव रहता है। कम-से-कम यह भाव तो रहता है कि भिखारी कोई तुच्छ वस्तु है। वह जो कुछ पाता है, उसमे उसे सुख नही मिलता। हम सब भिखारी है। हम जो कर्म करते है, उसका बदला चाहते हैं। हम सब व्यापारी बन गए हैै। हम जीवन का व्यापार करते हैं, गुणों का व्यापार करते हैं, धर्म का व्यापार करते हैं। आह ! हम प्रेम का भी व्यापार करते है। -स्वामी विवेकानन्द


विपत्तिकाल में या अपनी उन्नति के अभिलाषी व्यक्ति को इन पांच बातों का त्याग कर देना चाहिए, निराशा, दीनता, आलस्य, कटुता और क्रोध। -श्री अलख


क्लेश पांच प्रकार के होते हैं- अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और क्रोध। इन सबकी उत्पत्ति अज्ञान से होती है और इनसे दुःख उत्पन्न होता है। -पतंजलि


अहंकार, क्रोध, तृष्णा, ईष्र्या और आलस्य - इन पांचों के कारण ही मनुष्य अपने अभीष्ट के प्रति असफल होकर लोक में निंदा का पात्र बनता है। -याज्ञवल्क्य


जो निश्चित को छोड़कर अनिश्चित फल वाले कार्य की ओर प्रयत्न करने लगता है, उसका अनिश्चित कार्य तो निष्फल होता ही है और निश्चित कार्य भी नष्ट हो जाता है।-चाणक्य


ऋण, अग्नि, शत्रु, स्त्री, और द्वेष को कभी बढ़ने नहीं देना चाहिए। -विश्वामित्र


पांच वर्ष की उम्र तक की संतान को लाड़-दुलार करना चाहिए, पांच से पंद्रह वर्ष की उम्र तक उसके प्रति कठोरता का व्यवहार करना (नीति एवं आचरण आदि के हेतु) करना चाहिए। संतान की उम्र सोलह वर्ष हो जाए, तो उससे मित्र की भांति व्यवहार करना चाहिए। -चाणक्य